अस्तित्व: #BlogchatterA2Z

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                कविताओं से मेरी मुलाक़ात कुछ समय पहले ही हुई; लेकिन दिल्ली की भाग दौड़ के बीच, पेशे से डॉक्टर होते हुए भी काव्य रचना ने मेरा दमन थामे रखा है | इन कविताओं और शब्दों के ज़रिए मैने अपने मन का हर कोना टटोलकर देखा है और इन्होंने मुझे वो बनने में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो मैं आज हूँ | कम शब्दों में कहूँ तो इन कविताओं में मैने अपना अस्तित्व पाया है | मैने जाना के इतना सब जानकर भी हम अज्ञानता के अँधेरे को पार नहीं कर सके हैं…

असीम  ज्ञान  का  सागर,

बहती  धाराएँ,

कूपंन्डुक  मैं  निराधार ||

♥ ♥ ♥                           -doc2poet 

लेकिन फिर भी हमें अपने आप को केवल अपनी ही नज़रों से परखना चाहिए…

उनकी नज़रों में तो मेरा गुलशन भी ख़ाक है,

पर आँखें दो मैं भी लिए बैठा हूँ,

फिर उनकी किसे फिराक़ है ||

♥ ♥ ♥                          -doc2poet    

अपनी सीमाओं को पहचानने की कोशिश मैने इन पंक्तियों में की है…

पाँव  ज़मीं  पर  नहीं  मेरे,

के  इन  बादलों  पे  सवार  हूँ  मैं;

के  मैं  हूँ, और  मेरी  तन्हाई,

और  इस  ज़माने  के  पार  हूँ  मैं;

बेफ़िक्र  हूँ, बेखौफ़  हूँ,

के  मद्धम  जलती  अंगार  हूँ  मैं;

मैं  किल्कारी, मैं  आँसू  भी,

के  दामन  से  छलकता  प्यार  हूँ  मैं;

मैं  मुश्किल  हूँ, मैं  आसां  भी,

कभी  जीत  हूँ  तो, कभी  हार  हूँ  मैं;

उलझनों  की  इस  कशमकश  में,

उमीदों  की  ललकार  हूँ  मैं;

लुत्फ़  उठा  रहा  हूँ, हर  मुश्किल  का,

भट्टी  में  तपती  तलवार  हूँ  मैं;

ये  लहरें  ये  तूफान, तुम्हें  मुबारक,

के  कश्ती  नहीं  मझधार  हूँ  मैं;

मैं  मद्धम  हूँ, मैं  कोमल  हूँ,

और  चीते  सी  रफ़्तार  हूँ  मैं;

के  दर्दभरी  मैं  चीखें  हूँ,

और  घुँगरू  की  झनकार  हूँ  मैं;

मैं  निर्दयी  हूँ, मैं  ज़ालिम  हूँ,

के  मुहब्बत  का  तलबगार  हूँ  मैं;

मैं  शायर  हूँ, मैं  आशिक़  भी,

इस  प्रेम-प्रसंग  का  सार  हूँ  मैं;

तुम  मुझसे  हो, मैं  तुमसे  हूँ,

झुकते  नैनों  का  इक़रार  हूँ  मैं;

मैं  गीत  भी  हूँ, मैं  कविता  भी,

के  छन्दो  में  छुपा, अलंकार  हूँ  मैं;

मैं  ये  भी  हूँ, मैं  वो  भी  हूँ,

के  सीमित  नहीं  अपार  हूँ  मैं,

के  सीमित  नहीं  अपार  हूँ  मैं ||

♥ ♥ ♥                      -doc2poet    

अगर आपको मेरी कविताएँ पसन्द आयें तो मेरी पुस्तक “मन-मन्थन : एक काव्य संग्रह” ज़रूर पढ़ें| मुझे आपके प्यार का इन्तेज़ार रहेगा |

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41 thoughts on “अस्तित्व: #BlogchatterA2Z

  1. Alubhujiablog

    Mujhe to pehle se hi apki kavitayen behad Pasand hain . Bahut badiya . Jaante hain apki pehli Kavita Ka shirshak aur mere theme ka shirshak ek hi hai #Astitva , aap ki kavitayon me hilaane ki taaqat hai , likhte rahiye , main jeet bhi Hun haar bhi Hun , wah

    Liked by 1 person

    1. बहुत बहुत शुक्रिया। बेहद खूबसूरत इत्तेफाक है कि आपका शीर्षक भी यही है। इन कविताओं से ही मेरा अस्तित्व है, मुझे खुशी है कि आपको इतनी पसंद आईं। वैसे ये तो बस शुरुआत है…

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  2. ‘बेफ़िक्र हूँ, बेखौफ़ हूँ,

    के मद्धम जलती अंगार हूँ मैं;’ -For me these lines sum up our existence. Beautiful words. 🙂

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  3. Anagha Yatin

    From “Soham” to Koham, we forget that we are limitless… asim and apar! The moment we realise it, it becomes the moment of bliss, of liberation.
    Beautifully worded poem, rich in its depth, Doc.

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